दुर्गा मंदिर की नींव — आस्था, संस्कृति और एकता का प्रतीक
सरमेरा दुर्गा पूजा समिति की स्थापना सरमेरा गढ़ के प्रबुद्ध भूमिहार समाज एवं अन्य समान विचारधारा वाले व्यक्तियों के सामूहिक प्रयास से सन् 1937 में की गई थी। यह वह समय था जब देश स्वतंत्रता संग्राम की लहरों से आंदोलित था,...
Read Moreशारदीय नवरात्रि का पहला दिन घटस्थापना या कलश स्थापना से प्रारंभ होता है। यह माँ दुर्गा की शक्ति के आवाहन का प्रतीक है। भक्तजन जल से भरे कलश, आम के पत्ते और नारियल स्थापित करते हैं और नौ दिनों तक पूजा करते हैं। यह दिन दिव्य स्त्री शक्ति के जागरण का प्रतीक है और आगे होने वाली दुर्गा पूजा की नींव रखता है।
इस दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है, जो भक्ति, तपस्या और अनुशासन की प्रतीक हैं। उनके हाथों में जपमाला और कमंडलु होता है। भक्त उपवास करते हैं और ध्यान करते हैं, जिससे आत्मबल और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त हो। दीप प्रज्ज्वलन और मंत्रोच्चार द्वारा माँ से शक्ति और पवित्रता की कामना की जाती है।
इस दिन माँ चंद्रघंटा की पूजा होती है, जो साहस और सौंदर्य की प्रतीक हैं। उनके मस्तक पर अर्धचंद्र और वाहन सिंह होता है। उनकी उपासना से भय और विघ्न दूर होते हैं। भक्त पुष्प, फल अर्पित करते हैं और शांति व वीरता की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।
यह दिन माँ कूष्मांडा को समर्पित है, जिनकी मुस्कान से सृष्टि की उत्पत्ति हुई। वे जीवन और ब्रह्मांडीय ऊर्जा की स्रोत मानी जाती हैं। इस दिन दीप जलाए जाते हैं और विशेष भोग अर्पित किए जाते हैं। उनकी पूजा से स्वास्थ्य, समृद्धि और सुख की प्राप्ति होती है।
इस दिन माँ स्कंदमाता की पूजा की जाती है, जो भगवान कार्तिकेय की माता हैं। वे मातृ शक्ति और करुणा का प्रतीक हैं। उनकी पूजा से ज्ञान, शक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन भक्त फूल और मिठाई अर्पित करते हैं और माता-पुत्र की संयुक्त आराधना करते हैं।
इस दिन से दुर्गा पूजा का औपचारिक प्रारंभ माना जाता है। ‘बिल्व निमंत्रण’ की रस्म की जाती है, जिसमें माँ दुर्गा का आमंत्रण दिया जाता है। यह दिन देवी के पृथ्वी पर आगमन और असुर विनाश की शुरुआत का प्रतीक है। पंडाल सजाए जाते हैं और भक्ति का वातावरण बनता है।
महाषष्ठी के दिन देवी की प्रतिमा का उद्घाटन होता है। इस दिन कल्पारंभ, बोधन, आमंत्रण और अधिवास जैसी रस्में होती हैं। भक्त माँ दुर्गा का स्वागत मंत्र, फूल और धूप से करते हैं। यह दिन देवी के मायके आगमन और भक्ति-उत्सव के चरम की शुरुआत का प्रतीक है।
महासप्तमी के दिन नबपत्रिका (कोलाबौ पूजा) होती है, जिसमें नौ पौधों को नदी में स्नान कराकर देवी के समीप रखा जाता है। यह उर्वरता और समृद्धि का प्रतीक है। इस दिन फूल, नृत्य और संगीत से माँ की पूजा होती है।
महाअष्टमी दुर्गा पूजा का सबसे महत्वपूर्ण दिन है। इस दिन कुमारी पूजा और संधि पूजा की जाती है। यह क्षण देवी दुर्गा की महिषासुर पर विजय का प्रतीक है। ढाक-ढोल, मंत्र और भोग अर्पण से यह दिन पूर्ण भक्तिभाव से मनाया जाता है।
महानवमी के दिन देवी दुर्गा की विजय यात्रा का चरम होता है। इस दिन महाआरती, बलिदान और नवमी होम किया जाता है। भक्त शांति, सुरक्षा और समृद्धि की प्रार्थना करते हैं। यह दिन देवी के विदाई की तैयारी का सूचक है।
विजयादशमी के दिन भक्त माँ दुर्गा को विदाई देते हैं। प्रतिमा विसर्जन होता है, जो देवी के कैलाश लौटने का प्रतीक है। महिलाएँ सिंदूर खेला करती हैं, जो शक्ति और सौभाग्य का प्रतीक है। यह दिन अच्छाई की बुराई पर विजय और अगले वर्ष देवी के पुनः आगमन की आशा का प्रतीक है।